Monday, April 20, 2020

जयश्री स्वामिनारायण

भगवान स्वामीनारायण का जीवन परिचय | Swaminarayan Biography in Hindi

भगवान स्वामीनारायण का जन्म 3 अप्रैल 17 उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था । उन का असली नाम घनश्याम पांडे था तथा इनके पिता का नाम श्री हरि प्रसाद राय माता का नाम भक्ति देवी था । इनके माता-पिता ने ही इनका नाम घनश्याम रखा था । बालक के हाथ और पद और पैरों से ब्रज उधर्व रेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने यह कह दिया कि यह बालक लाखों लोगों को जीवन की सही दिशा देगा । 5 वर्ष में बालक को अक्षर ज्ञान दिया गया तथा 8 वर्ष में जनेऊ संस्कार हुआ |




जब वह केवल 11 वर्ष का थे तब  ही इस छोटी अवस्था में उसने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया । बचपन में ही माता और पिताजी का देहांत हो गया तथा कुछ समय बाद अपने भाई से किसी बात पर विवाद होने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और अगले 7 साल तक पूरे देश की परिक्रमा की |


अब लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे | इस दौरान उन्होंने गोपाल योगी से अष्टांग योग सिखा व उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची श्रीरंग पुरम रामेश्वरम तक गए । इसके बाद पंढरपुर वह नासिक होते हुए गुजरात आ गए ।  एक दिन यह नीलकंठ मांगरोल के पास ‘लोज’ गांव में पहुंचे । उनका परिचय स्वामी मुक्तानंद से हुआ जो स्वामी रामानंद के शिष्य थे । नीलकंठवर्णी स्वामीनारायण, रामानंद के दर्शन को उत्सुक थे | उधर रामानंद जी भी प्राय भक्तों से कहते थे कि असली नट तो तब आएगा, मैं तो उसके आगमन से पूर्व डुगडुगी बजा रहा हूं, भेंट के बाद रामानंद जी ने उन्हें स्वामी मुक्तानंद के साथ ही रहने को कहा । नीलकंठ वर्णी ने उनका आदेश शिरोधार्य किया |  उन दिनों स्वामी मुक्तानंद कथा करते थे । उसमें स्त्री तथा पुरुष दोनों हीं आते थे । नीलकंठ वर्णी ने देखा की अनेक श्रोता और साधुओं का ध्यान कथा की ओर ना होकर महिलाओं की ओर होता है । उन्होंने पुरुष तथा स्त्रियों के लिए अलग कथा की व्यवस्था की तथा प्रयास पूर्वक महिला कथावाचकों को भी तैयार किया ।



उनका मत था कि सन्यासी को उसके लिए बनाए गए सभी नियमों का कठोरता पूर्वक पालन करना चाहिए | कुछ समय बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठ वर्णी को पीपल आना गांव में शिक्षा देकर उनका नाम सहजानंद रख दिया ।

एक साल बाद जयपुर में उन्होंने सहजानंद को अपने संप्रदाय का आचार्य पदवी दे दिया । इसके कुछ समय बाद स्वामी रामानंद जी का स्वर्गवास हो गया, अब स्वामी सहजानंद ने गांव-गांव घूमकर कथा-प्रचार किया | उन्होंने निर्धन सेवा का लक्ष्य बनाकर सब वर्गों को अपने साथ जोड़ा इससे उनकी ख्याति सब और फैल गई |

वह अपने शिष्यों को 5 व्रत लेने को कहते थे, इनसे मांस, मदिरा, चोरी, व्याभिचार का त्याग तथा सर्व धर्म को पालन की बात होती थी । भगवान स्वामीनारायण ने अजय नियम बनाए तथा सभी उनका कठोरता से पालन करते थे ।



उन्होंने यज्ञ में हिंसा, बली प्रथा, सती प्रथा, कन्या हत्या, भूतबाधा जैसी कृतियों को बंद कराया । उनका कार्यक्षेत्र मुख्यता गुजरात रहा ।प्राकृतिक आपदा आने पर वह बिना भेदभाव के सब की सहायता करते थे । इस सेवाभाव को देखकर लोग उन्हें भगवान के अवतारी मानने लगे |

भगवान स्वामीनारायण जी ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया तथा इनके निर्माण के समय में स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे । भगवान स्वामीनारायण अपने कार्यकाल में अहमदाबाद मूली भुज जेतलपुर धोलका वडताल बड़ा धोलेरा तथा जूनागढ़ में भव्य मंदिर का निर्माण किया, जो मंदिरों की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है ।

धर्म के प्रति इस प्रकार श्रद्धा भाव जगाते हुए भगवान स्वामीनारायण 1 जून 1831 में अपने देह छोड़ दी आज उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं वह मंदिरों को सेवा विज्ञान का केंद्र बना कर काम करते हैं ।

No comments:

Post a Comment

𝘐𝘧 𝘺𝘰𝘶 𝘬𝘯𝘰𝘸 𝘢𝘯𝘺 𝘥𝘰𝘸𝘯𝘵 𝘱𝘭𝘦𝘢𝘴𝘦 𝘭𝘦𝘵 𝘮𝘦 𝘯𝘰𝘸

Tomoto

टमाटर  विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है। इसका पुराना वानस्पतिक नाम  लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम  मिल है। वर्तमान समय में इसे ...